1. प्रिय छात्रों एवं अभिवावकगणों , मानवीय गुण अनुशासन तथा शिक्षा के अदभूत विकास के लिये संस्थान में उचित शैक्षणिक संसाधन के प्रबन्ध किये गये है साथ ही साथ आवश्यकता के अनुकूल संख्या मैं उच्च शिक्षा से सुसज्जित अनुभवी एवं कुशल प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक एवं अध्यापिकाओं को नियुक्त किया गया है इनके कुशल मार्गदर्शन में छात्र एवं छात्राओ को उचित शिक्षा प्रदान करने क लिये उपयुक्त वातावरण कि पृष्ट्भूमि तैयार कर छात्र एवं छात्राओ के मानसिक स्तर का आकलन करते हूए उनके विकास का श्रेष्ठतम बिन्दु पर पहचाने हेतु मरूधर विद्यापीठ शिक्षण संस्थान शिवदानपुरा बुढेर अति सुक्ष्म मनोवैज्ञानिक विधि से शिक्षा ज्ञान का प्रकाश पुंज प्रदान करने मे तत्पर है । इसलिये मुझे विश्वास है कि आप ऐसे संस्थान में प्रवेश लेने जा रहे है जिसमें उचत्तम शिक्षा एवम उत्तम भविष्य कि अपार संभावनाएं है अतः मै इस प्रांगण में आपके आगमन का स्वागत करता हूँ और इस नवीन सत्र में आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ । 2.अभिभावकों के नाम एक संदेश : - बच्चों में जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव आ गया है। आज का नागरिक अपना जीवन अपने अंदाज में व्यतीत करना चाहता है। इसमें किसी का हस्तक्षेप करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं है। इस जीवन जीने की कला में वह अपनी जिम्मेदारियों से बचने का भी प्रयास कर रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव परिवार और समाज पर पड़ रहा है। हमें विशेषकर अभिभावकों ओर शिक्षकों का मार्गदर्शन बच्चों के जीवन जीने की शैली को बहुत हद तक प्रभावित करता है। हमें उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हुए परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उनके दायित्वों के प्रति भी जागरूक करना होगा। ऐसा नहीं करते हैं तो युवा पीढ़ी अपने जीवन और उनके दायित्वों के बारे में जिम्मेदार नहीं हो पाएंगे। आज के विद्यार्थियों के जीवन की शैली में जो परिवर्तन आया है वह सबसे अधिक संस्कारों का है। आज का विद्यार्थी मेधावी, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बहुत अधिक रुचि रखता है लेकिन सुसंस्कारित नहीं है। अच्छे संस्कारों की कमी के कारण उठना, बैठना, बोलना, बड़ों का आदर सत्कार, माता-पिता, गुरुजनों के सम्मान में रुचि नहीं रखता। इन सबका कारण माता-पिता के समय अभाव एवं संयुक्त परिवार का कम होना है। प्रत्येक माता पिता यह उम्मीद करते है कि उनका बच्चा बेहतर शिक्षा ग्रहण करे, अच्छे संस्कार स्कूल में शिक्षक भी सिखाएं। विषय ज्ञान के लिए विद्यार्थी उत्तरदायित्व हैं लेकिन संस्कारों, वास्तविक प्रयोगशाला तो घर एवं परिवार हैं जहां बच्चों के व्यवहार एवं संस्कारों का वास्तविक प्रयोग होता है। आज का शिक्षक एवं छात्र दोनों अंकों के खेल में व्यस्त हो गए हैं। उनका एक ही लक्ष्य सर्वाधिक अंक लाकर कुछ बनने का होता है। अध्यापक भी छात्रों के सर्वांगीण विकास के स्थान पर मानसिक विकास पर केंद्रीत होता है। इस भागदौड़ में जीवन के अच्छा नागरिक या अच्छा इंसान बनाने की पहलू अछूते रह जाते हैं। हमारे समय में शिक्षक एक ईश्वर की तरह वास्तविक रूप से पूज्यनीय होते थे। आज इस स्तर में बहुत बदलाव आया हुआ है। इसके लिए हम सभी समाज के लोग जिम्मेदार हैं। विद्यालय भी एक उपवन हैं जहां बच्चे उसके फूल हैं। उन फूलों को हम कैसी शिक्षा से पोषण करते हैं यही उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम बच्चे का सर्वांगीण विकास की बात करते हैं तो वह केवल किताबी ज्ञान में ही बौद्धिक रूप से सफल नहीं बना रहे हैं बल्कि व्यक्तित्व और विचारों से भी उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। शिक्षकों को बच्चों के समक्ष उदाहरण बनना होगा। बच्चे माता पिता और साथियों की अपेक्षा शिक्षकों के विचार और व्यवहार को जल्दी अनुसरण करते हैं। जब जब अभिभावक यह कहता रहेगा कि बच्चों के लिए उनके पास समय नहीं है तब तब बच्चों के प्रति हम अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रहे हैं। ऐसे में बच्चों को उनके दायित्व के प्रति केवल पढ़ाने मात्र से काम नहीं चलेगा। ऐसे बच्चे किशोर अवस्था तथा युवा अवस्था तक पहुंचते पहुंचते वे अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारण नहीं कर पाते जिस कारण उन्हें अपना जीवन नीरस लगने लगता है। ऐसे में हमें बच्चों में पहले मेरा जीवन का अहसास कराना होगा इसके बाद ही वे अपना दायित्व समझ सकेंगे।
रोहिताश सहारण
संचालक मरुधर विद्यापीठ शिवदानपुरा बुढ़ेर
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